Friday, 6 April 2012

बकरी का दूध पीने वाले बकरी की ही तरह काट दिए जाते है.


बकरी का दूध पीने वाले बकरी की तरह ही मिमयाते और बकरे की ही तरह काट दिए जाते है. जिनका गोस्त बाजारों में बिकता है और खून नालियों में बहता है. हम उन शिवाजी की संतान है जो शेरनी का दूध गुरु की खातिर ले आये थे. मुगलों को लोहे के चने चबवाए थे. उनका लहू हमारी रगों में दौड़ रहा है जिन गुरुओ ने अपने शीश कटवाए थे, पुत्र अपने दीवारों में चिन्वाये थे, रणभूमि में सर अपना काट युद्ध जितवाए थे.
माँ दुर्गा की सिंह की सवारी दुष्टों को दहलाती थी, कृष्ण की बासुरी मोहती थी सबको, चक्र सुदर्शन दुष्टों पर कहर धाती थी. राम चन्द्र थे रूप प्रेम का, दुष्टों का भय थे वे. हनुमान ज्ञान के सागर थे दुष्टों के काल रूप थे वो.
याद करो उन सबके रूप जिनमे इश्वर है बैठा. कायरो की बोली मत बोलो कभी तुम, बकरी को नोचते है भेडिये, शेरो को नुचते है कभी देखा. सिंह गर्जना से ही दुस्तो के दिल है दहल जाते .....

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